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‘पुलिस पर तुरंत FIR होनी चाहिए थी, CID जांच का इंतजार गलत’, बदलापुर एनकाउंटर मामले में एमिक्स क्यूरी की दलील – Badlapur encounter; Amicus Curiae says state CID should have registered FIR against policemen immediately ntc


बदलापुर एनकाउंटर मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त एमिक्स क्यूरी (न्यायालय मित्र) मंजुला राव ने कहा कि महाराष्ट्र राज्य अपराध जांच विभाग (CID) को पुलिसकर्मियों के खिलाफ तुरंत FIR दर्ज करनी चाहिए थी. एमिक्स क्यूरी ने हाईकोर्ट में कहा कि जिस समय राज्य CID ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ली, उसी समय FIR दर्ज होनी चाहिए थी. वहीं महाराष्ट्र सरकार ने इसके विपरीत कहा था कि वे अपराध जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा जांच पूरी होने के बाद ही एफआईआर दर्ज करेंगे, वह भी अगर जरूरत पड़ी तो.

एमिकस क्यूरी मंजुला राव ने कहा, “पुलिस के पास कोई विकल्प नहीं है. यह अनिवार्य है. क्योंकि जांच के बाद उनके पास यह विवेकाधिकार होता है कि वे एफआईआर बंद करें या चार्जशीट दाखिल करें. लेकिन सीआईडी ​​के सामने आते ही उन्हें एफआईआर दर्ज कर लेनी चाहिए थी.” 

दरअसल, न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और डॉ. नीला गोखले की पीठ ने राव को न्यायमित्र नियुक्त किया था, ताकि यह पूछा जा सके कि क्या मजिस्ट्रेट की जांच के बाद पुलिसकर्मियों को जवाबदेह ठहराए जाने के बाद राज्य सरकार उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है या वह इसमें देरी कर सकती है और सीआईडी ​​और राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट देने के लिए इंतजार कर सकती है.

राव ने कहा कि 23 सितंबर, 2024 को मुंब्रा बाईपास पर मुठभेड़ हुई थी और अगले दिन मृतक अक्षय शिंदे के माता-पिता ने ठाणे पुलिस आयुक्त और ठाणे के कलवा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे की हत्या पुलिसकर्मियों ने की है. राव ने विस्तार से बताया, “शिकायत या लिखित सूचना जो संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है, उसके लिए प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होती है. सूचना की वास्तविकता एफआईआर दर्ज करने से पहले की शर्त नहीं होती है.”

इसके अलावा, राव ने कहा कि पुलिस ने दावा किया कि मुठभेड़ एक दुर्घटना थी और इसलिए एक आकस्मिक मृत्यु रिपोर्ट (एडीआर) दर्ज की गई थी. इसके बाद इसे अपराध शाखा और फिर राज्य सीआईडी ​​को सौंप दिया गया. राव ने कहा, “वे एफआईआर दर्ज करने और फिर जांच करने के लिए बाध्य हैं. वे आरोपी को गिरफ्तार न करने का फैसला ले सकते हैं और जांच के बाद अगर उन्हें लगता है कि सूचना में कोई सच्चाई नहीं है, तो वे आरोपी को बरी कर सकते हैं और जांच बंद कर सकते हैं. लेकिन वे एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य हैं. अगर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है तो कानून आगे नहीं बढ़ सकता है.” 

सरकार का पक्ष क्या है?

वहीं महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि वह सीधे FIR दर्ज नहीं करेगी, बल्कि पहले CID और राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग की रिपोर्ट का इंतजार करेगी. सरकार का कहना है कि मजिस्ट्रेट जांच के आधार पर ही FIR दर्ज नहीं की जा सकती. हाईकोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और डॉ. नीला गोकले की बेंच ने सवाल उठाया कि क्या राज्य को मजिस्ट्रेट जांच के बाद पुलिसकर्मियों पर FIR दर्ज करनी होगी या वह CID जांच पूरी होने तक इंतजार कर सकता है? हाईकोर्ट इस मामले में आगे सुनवाई करेगी और तय करेगी कि पुलिस पर FIR दर्ज करना जरूरी था या नहीं.

क्या है पूरा मामला

बता दें कि 23 सितंबर 2024 को मुम्ब्रा बायपास पर अक्षय शिंदे नामक आरोपी का एनकाउंटर हुआ. अक्षय को बदलापुर पुलिस ने अगस्त 2024 में एक स्कूल में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया था. बाद में, 23 सितंबर को पुलिस उसे न्यायिक हिरासत से पुलिस हिरासत में ले जा रही थी. इसी दौरान, पुलिस के मुताबिक, अक्षय ने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीनकर फायरिंग कर दी, जिसमें निलेश मोरे नामक पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके जवाब में, सीनियर इंस्पेक्टर संजय शिंदे ने अक्षय के सिर में गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.



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