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‘माधबी बुच के खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश को चुनौती देंगे’, कोर्ट के निर्देश पर SEBI का बयान – Madhabi Buch court orders case sebi response challenge register FIR ntc


भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने बयान जारी कर कहा कि वह मुंबई की स्पेशल एंटी-करप्शन कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देगा, जिसमें पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित शेयर बाजार घोटाले और नियामकीय अनियमितताओं के आरोप में FIR दर्ज करने का निर्देश दिया गया है.

SEBI ने इस आदेश को निराधार और शिकायतकर्ता को ‘फिजूल और आदतन याचिकाकर्ता’ करार देते हुए कहा कि नियामक इस आदेश के खिलाफ कानूनी कदम उठाएगा.

‘आदेश के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाएंगे’

SEBI ने अपने बयान में कहा कि शिकायतकर्ता पहले भी अदालतों में इसी तरह की कई याचिकाएं दायर कर चुका है, जिनमें से कई मामलों में उसे अदालत ने जुर्माने के साथ खारिज किया है. SEBI इस आदेश के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाएगा और हर मामले में नियामकीय अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है.

SEBI और BSE के शीर्ष अधिकारियों पर FIR के आदेश

बता दें कि ये आदेश ठाणे के पत्रकार सपन श्रीवास्तव की ओर से दायर एक आवेदन पर आया है. विशेष न्यायाधीश एसई बांगर ने शनिवार (1 मार्च) को मुंबई एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) को निर्देश दिया कि माधबी पुरी बुच, सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अश्विनी भाटिया, आनंद नारायण और कमलेश चंद्र वर्श्नेय के साथ-साथ BSE के सीईओ सुंदररमन राममूर्ति और पूर्व चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल के खिलाफ FIR दर्ज की जाए.

हमें पक्ष रखने का मौका दिए बिना कोर्ट ने आदेश पारित कियाः SEBI

SEBI ने कहा कि ये आदेश उन अधिकारियों के खिलाफ दिया गया है, जो उस समय संबंधित पदों पर कार्यरत भी नहीं थे. इसके बावजूद, कोर्ट ने सेबी को नोटिस जारी किए बिना और हमें अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना यह आदेश पारित कर दिया.

क्या कहा था कोर्ट ने?

बता दें कि सपन श्रीवास्तव ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि सेबी के अधिकारियों ने अपनी कानूनी जिम्मेदारियों का पालन नहीं किया, बाजार में हेरफेर को बढ़ावा दिया और एक ऐसी कंपनी की लिस्टिंग की इजाजत दी, जो तय मानकों को पूरा नहीं करती थी. याचिका में Cals Refineries नामक कंपनी के मामले को उठाया गया है, जिसके स्टॉक लिस्टिंग में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. कोर्ट ने आदेश में कहा कि प्रथम दृष्टया नियामकीय चूक और मिलीभगत के प्रमाण हैं, जिन्हें निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच की आवश्यकता है. कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सेबी की निष्क्रियता को देखते हुए न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है. कोर्ट ने रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री का अध्ययन करने के बाद एसीबी वर्ली को FIR दर्ज करने का निर्देश दिया. 



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