मुगल बादशाह बाबर को आगरा के बाद काबुल में फिर से क्यों दफनाया गया, जानें वजह – Why was Mughal emperor Babur reburied in Kabul after Agra know the reason ntcpan
महाराष्ट्र समेत पूरे देश में फिलहाल मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर विवाद पैदा हो गया है. लोगों की मांग है कि महाराष्ट्र के खुल्दाबाद स्थित औरंगजेब की कब्र को कहीं और शिफ्ट किया जाए. खुल्दाबाद, महाराष्ट्र के संभाजी नगर जिले में स्थित है जिसे पहले औरंगाबाद के नाम से जाना जाता था. हालांकि इस विवाद से अलग एक मुगल बादशाह ऐसा भी था जिसे मौत के बाद दो-दो बार दफनाया गया और उसकी कब्र को आगरा से काबुल शिफ्ट किया गया था.
मुगल साम्राज्य का संस्थापक था बाबर
भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक और पहले बादशाह बाबर ने ही 1526 में देश में मुगल साम्राज्य की स्थापना की. हालांकि इसके सिर्फ चार बाद 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई. बाबर के ही मुगल वंशजों ने हिन्दुस्तान पर करीब 300 साल तक शासन किया. लेकिन उनके सबसे पहले बादशाह बाबर को मौत के बाद आखिर में काबुल में दफनाया गया था.
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करीब 45 साल की उम्र में मुगल सम्राट बाबर की मौत 26 दिसंबर 1530 में आगरा में हुई थी और उसे आराम बाग में दफना दिया गया. यह भारत का सबसे पुराना मुगल गार्डन है, जिसे बाबर ने ही 1528 में बनवाया था. हालांकि बाबर ने मरने से पहले इच्छा जाहिर की थी कि उसे काबुल में दफनाया जाए और वहीं उसकी कब्र बनाई जाए. बाबर का बेटा हुमायूं अपने पिता की इस इच्छा पूरी नहीं कर सका और उन्हें यमुना किनारे बने आराम बाग में ही अस्थाई रूप से दफना दिया गया.
मौत के 14 साल बाद फिर से दफन
मौत के करीब 14 साल बाद 1544 में बाबर की अंतिम इच्छा पूरी हुई और उसे काबुल के बाग-ए-बाबर में फिर से दफनाया गया. आराम बाग की तरह यह बाग खुद बाबर ने 1504 में काबुल जीतने के बाद बनवाया था. हिन्दुस्तान पर राज के दौरान भी बाबर को बार-बार अपने मुल्क की याद आती थी और यह बात उसकी आत्मकथा में भी दर्ज है. शायद यही वजह रही कि उसने काबुल में दफन होने की इच्छा जताई थी.
UNESCO की रिपोर्ट के मुताबिक मुगल बादशाह बाबर का पार्थिव शरीर उसकी विधवा द्वारा 1544 के आसपास बाग-ए-बाबर लाया गया था. बाग-ए-बाबर को चुनने की एक वजह यह भी रही कि इस क्षेत्र का इस्तेमाल बाबर के पूर्वजों के समय में कब्रिस्तान के रूप में किया जाता था. मुगल वंश के संस्थापक के मकबरे के बगीचे के रूप में काबुल स्थित बाग-ए-बाबर सम्मान का एक प्रतीक बन गया. लगभग 150 सालों तक उसके उत्तराधिकारी, विशेष रूप से जहांगीर और शाहजहां ने बाबर की समाधि पर अपना सम्मान व्यक्त किया और चलन के हिसाब से बगीचे को संरक्षित और सुंदर बनाने के लिए कई निर्माण भी करवाए.
बाग-ए-बाबर में बनी है कब्र
बाग-ए-बाबर काबुल के पुराने शहर के दक्षिण-पश्चिम में कुह-ए-शेर दरवाज़ा की ढलानों पर स्थित है. यह बाग लगभग 11.5 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें एक मुख्य द्वार के अलावा 15 छत हैं. सबसे ऊपर की छत से यहां आने वाले पर्यटकों को बाग और इसकी दीवार के अलावा काबुल नदी के पार बर्फ से ढके पहाड़ों का शानदार दृश्य दिखाई देता है.
कौन था जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर
मुगल बादशाह बाबर ने 1526 ई से 1530 ई तक हिन्दुस्तान पर शासन किया. बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पांचवा और माता की ओर से चंगेज खान का चौदहवां वंशज था. बाबर के पिता उमरशेख मिर्जा फरगाना नाम के छोटे से राज्य के शासक थे और 8 जून 1494 ई में बाबर फरगाना का शासक बना. बाबर ने 1507 ई में बादशाह की उपाधि धारण की, जो अब तक किसी तैमूर शासक को नहीं मिली थी. उसे फारसी भाषा में महारत हासिल थी. उसने 1526 ई. में पानीपत के युद्ध में दिल्ली सल्नत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के बाद मुग़ल वंश की स्थापना की थी.
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बाबर ने भारत पर कई बार आक्रमण किया, जिनमें पानीपत के अलावा खनवा में राणा सांगा, चंदेरी में मेदनी राय, घाघरा में अफगानों को जंग में हराना शामिल है. युद्ध जीतने के बाद बाबर को कलंदर और गाजी जैसी उपाधियों से नवाजा गया था. बाबर के बाद उनके बेटे हुमायूं ने मुगल वंश को आगे बढ़ाया.