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वक्फ विधेयक पर NDA एकजुट, विपक्ष का प्लान फेल! कल लोकसभा में पेश होगा बिल, सभी दलों ने कसी कमर – NDA united on Waqf bill opposition plan failed Waqf amendment Bill to be presented in Lok Sabha all parties have geared up ntc


अब से कुछ घंटे बाद देश की सियासत में संसद के भीतर वक्त बदलने वाला है, जब आठ घंटे की बहस शुरू होगी. तय होगा कि देश की सबसे बड़ी और ताकतवर मुस्लिम संस्था वक्फ बोर्ड का वक्त अब बीते दौर की बात है या नहीं. कल लोकसभा में दोपहर 12 बजे वक्फ संशोधन बिल सरकार ला रही है. कल ही वोटिंग भी होगी और ये तय माना जा रहा है कि मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल के सबसे अहम बिल पर कल जीत हासिल कर सकती है. अब तक नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, देवगौड़ा, चिराग पासवान, मांझी, जयंत चौधरी की पार्टी ने बिल के समर्थन की हरी झंडी दे दी है. कर्नाटक में सहयोगी दल जेडीएस के दोनों सांसद भी कल वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करेंगे. 

भले तीसरी बार में अपने दम पर बहुमत से बीजेपी 32 सीट दूर रह गई हो लेकिन कुछ ही घंटे बाद संसद में वक्फ संशोधन बिल पर सरकार अपना शक्ति प्रदर्शन दिखाएगी. भले 63 सीट पिछली बार के मुकाबले लोकसभा में बीजेपी की घटी हो लेकिन सरकार बताने जा रही है कि हम सीटें घटने से बड़े फैसले लेने में पीछे नहीं हटते. भले तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार 14 सहयोगी दलों के 53 सांसदों के समर्थन पर टिकी हो लेकिन सरकार कुछ ही घंटे में बताने जा रही है कि बहुमत से बड़ा सर्वमत होता है. ऐसे में आज इस सवाल को समझना है कि क्या देश में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होती आई सियासत का वक्त अब वक्फ बिल के साथ बदलने जा रहा है? 

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क्या बदलने वाली है मुस्लिम वोट की सियासत?

‘धर्मनिरपेक्षता की राजनीति’ ये वो शब्द है जो 90 के दशक की सियासत में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की तरफ से गढ़ा जाता था. जहां बीजेपी को सांप्रदायिक बताकर विरोधी धर्मनिरपेक्षता का दावा करके एकजुट हो जाता था और तब बीजेपी सत्ता में रहते हुए भी धर्मनिरपेक्षता का छाता लगाकर होती विरोधियों की राजनीति के आगे बड़े फैसले लेने में हिचकिचाती थी. लेकिन 21वीं सदी में मोदी स्टाइल सियासत अलग है. जहां धर्मनिरपेक्षता के तराजू पर बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने वाले विरोधियों के मंसूबे बुधवार को वक्फ संशोधन बिल के मुद्दे पर हवा में लटके रह सकते हैं क्योंकि गठबंधन सरकार होने के बावजूद नीतीश-नायडू, चिराग, मांझी के समर्थन के साथ मोदी सरकार का पलड़ा भारी लग रहा है.

सरकार जिस वक्फ बिल के जरिए बदलाव ला रही है वो केवल वक्फ बोर्ड को ही नहीं बदलने वाला है, बल्कि देश की मुस्लिम वोट की सियासत और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर होती राजनीति को भी बदल रहा है. क्योंकि विपक्ष के तमाम तानों, उलाहनों के बावजूद ना तो नीतीश, ना चंद्रबाबू नायडू, ना चिराग पासवान, ना ही जयंत चौधरी का स्टैंड बिल के विरोध में आया है. वक्फ संशोधन बिल बुधवार को लोकसभा में पास होता है तो ये राहुल गांधी की राजनीति के लिए झटका होगा. 

विपक्ष के हाथ लगी निराशा

कुछ महीने पहले लोकसभा में बहुमत से अपने दम पर बीजेपी के दूर रहने पर राहुल गांधी लगातार तंज कस रहे थे और कह रहे थे कि हमने प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास कमजोर कर दिया है. हमने नरेंद्र मोदी को साइकोलॉजिकली पूरी तरह उड़ा दिया है. प्रधानमंत्री का पूरा का पूरा कॉन्फिडेंस गायब हो गया है. लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी जहां भी गए, अपनी हर रैली में दावा करते रहे कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का आत्मविश्वास तोड़ दिया है. लेकिन अब पिछले एक साल से कम वक्त में एक तरफ मोदी सरकार हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली तक में चुनाव जीत चुकी है, तो वहीं दूसरी तरफ अब तीसरे कार्यकाल में वक्फ संशोधन से जुड़ा बड़ा बिल लोकसभा में लाकर पास कराने की भी तैयारी कर चुकी है. मकसद साफ है, मैदान चुनाव का हो या फिर संसद में बिल पास कराने का, पीएम मोदी की राजनीति झुकने वाली नहीं है.

अब ना कोई किंतु दिख रहा है, ना कोई परंतु. नीतीश कुमार की पार्टी की तरफ से खुलकर कह दिया गया है कि हम वक्फ संशोधन बिल का कल समर्थन करेंगे. आजतक से बातचीत में जेडीयू के चीफ व्हिप दिलेश्वर कामत ने कहा कि उनके सांसद मजबूती से सरकार के समर्थन में संसद के अंदर वोट करेंगे. पार्टी के सभी सांसदों को इसके लिए व्हिप जारी किया जा चुका है. 

वक्फ संशोधन बिल, मुस्लिम आरक्षण और समान नागरिक संहिता, ये वो मुद्दे हैं जिन पर पिछले साल से चर्चा होती आई कि क्या बीजेपी को अपने सहयोगी दलों के साथ इन पर सामंजस्य बैठाना कठिन होगा. अगर कल लोकसभा में पेश होने वाले बिल का ही उदाहरण लें तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर पूरी विपक्ष की राजनीति इसी पर केंद्रित रही कि बिल का विरोध नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू कर दें. लेकिन लगता है कि विरोधियों के दांव को मोदी सरकार चलने नहीं देगी. तभी तो नीतीश कुमार ने बिल को लेकर जो शर्तें सुझाव के तौर पर रखीं, उन्हें बिल में शामिल कर लिया गया. नतीजा ये है कि सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार की पार्टी ने बिल के समर्थन का फैसला किया है.

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नंबर गेम से नहीं बनेगा विपक्ष का खेल 

नीतीश कुमार के पलटने का इतिहास देखकर इस बार विपक्ष को लगा होगा कि इफ्तार पार्टियां करते सुशासन बाबू क्या पता फिर पलटेंगे इसीलिए ओवैसी की पार्टी के नेता तक नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट के नाम पर बीजेपी के खिलाफ जगाने में अंत तक जुटे रहे. विपक्ष नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के भरोसे ही किसी तरह वक्फ बिल को रोकने में इसलिए लगा रहा क्योंकि नंबर गेम में विपक्ष की चलने वाली नहीं है. 

लोकसभा में NDA के 293 सांसद हैं. इंडिया गठबंधन के पास 235 सांसद हैं, जिसस में अन्य को भी जोड़ दें तो ये संख्या 249 तक ही जाती है. जबकि बहुमत का नंबर 272 है. विपक्ष को लगता रहा कि अगर 16 सांसद वाली टीडीपी और 12 सांसद वाली जेडीयू वक्फ बिल का विरोध कर दें तो गेम पलट सकता है क्योंकि तब NDA का नंबर घटकर 265 हो जाएगा और बिल के विरोध में नंबर 277 पहुंच जाएगा. 

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन जगह किया प्रदर्शन

इसी आस में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश में तीन जगह प्रदर्शन करता रहा. ये प्रदर्शन तीन जगह हुआ, दिल्ली, बिहार की राजधानी पटना और आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा. इसी से आप समझ लीजिए कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को बिल के विरोध में लाने के लिए विपक्षी दलों से लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तक ने कितने डोरे डाले, कितना दबाव बनाया. यहां तक कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदर्शन तक में नीतीश और नायडू का नाम लिखकर पोस्टर तक लगाए गए, ताकि ये बिल का विरोध कर दें.

मुस्लिम हित और वोट का दावा करते इन दबावों के बीच एक बार लगा कि क्या नीतीश कुमार वक्फ बिल पर पलटी भी मार सकते हैं. जब मुख्यमंत्री पटना में अचानक सक्रिय होकर प्रदेश कार्यालय में नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंच गए. तब तक कुछ बयान ऐसे आए, जिनसे लगने लगा कि क्या नीतीश कुमार कहीं सस्पेंस के साथ खेल ना कर दें. पहला बयान आया गुलाम गौस का, जेडीयू एमएलसी, जिन्होंने कहा कि वक्फ बिल वापस लेना देशहित में है. इसके बाद दूसरे बयान ने चौंकाया. जेडीयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों से नीतीश कुमार समझौता नहीं करते. 

इन दो बयानों के बाद लगा कि क्या वाकई बुधवार को लोकसभा में पेश होने वाले वक्फ बिल पर नीतीश कुमार की पार्टी का सस्पेंस सियासत में किसी भी करवट बैठ सकता है. लेकिन फिलहाल वक्फ बिल पेश होने से कुछ घंटे पहले तक सियासत की सच्चाई यही है कि नीतीश कुमार के कंधे पर विरोध की बंदूक रखकर चलाने की कोई भी गुंजाइश विपक्ष को नहीं दिख रही है क्योंकि सरकार ने वक्फ संशोधन बिल पर जेडीयू की शर्त वाले हर सुझाव को मान लिया है. 

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सरकार ने मानी नीतीश की सभी मांगें

नीतीश कुमार चाहते थे कि जमीन राज्य का मामला है, वक्फ की जमीन को लेकर राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र बना रहे. वक्फ बिल में ये बात मान ली गई है. नीतीश कुमार चाहते थे कि नया कानून पुरानी तारीख से लागू ना हो, पुरानी मस्जिदों, दरगाह या अन्य मुस्लिम धार्मिक स्थानों से छेड़छाड़ ना हो, ये बात भी बिल में मानी गई है. साथ ही वक्फ की संपत्ति है या नहीं ये तय करने के लिए राज्य सरकार कलेक्टर रैंक से ऊपर के अधिकारी को नियुक्त कर सके. इस मांग को भी मान लिया गया है. यानी मुफ्ती हों या मौलाना हों या फिर विपक्ष के दांव पेच हो, फिलहाल वक्फ संशोधन बिल को लेकर मोदी के समर्थन का जो हाथ नीतीश कुमार ने पकड़ा, उसे कोई हिला या डिगा नहीं पा रहा है.



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