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शिखंडी, वृहन्नला और कैनेथ… Squid Games में ही नहीं भारतीय-ग्रीक मिथकों में भी रहे हैं ट्रांसजेंडर लड़ाके – Squid Games 2 korean web series controversy mythology mahabharat ramayan greek shikhandi mohini ntcpvp


इस वक्त कोरियन वेब सीरीज Squid Game 2 काफी चर्चा में है और इससे भी अधिक चर्चित है प्लेयर नंबर 120. अन्य किरदारों के साथ प्लेयर नंबर 120 ने भी दर्शकों का दिल अपनी दमदार एक्टिंग से जीता है, लेकिन इसी दमदार एक्टिंग और लोगों में चर्चित हो जाने के बीच ही यह किरदार विवादों में भी आ गया है. दर्शकों ने इसकी कास्टिंग को लेकर सवाल उठाए थे, जिस पर मेकर्स ने सफाई दी है.

स्क्विड गेम 2′ में ट्रांसजेंडर किरदार

स्क्विड गेम 2′ में Hyun-ju यानी प्लेयर 120 एक नया किरदार है जो एक ट्रांसजेंडर फीमेल और स्पेशल फोर्स का एक्स-सोल्जर है. Hyun-ju अपनी जेंडर कन्फर्मेशन सर्जरी करवाना चाहती है और इसके लिए उसे फंड्स की जरूरत है, जिसे वो गेम जीतकर पूरा कर सकती है. लेकिन वो पहले सीजन के किरदार Gi-hun की बगावत से जुड़ने वाली पहली व्यक्ति होती है.

किरदार की कास्टिंग को लेकर हुआ विवाद
दूसरे सीजन में जहां एक ट्रांसजेंडर किरदार लोगों का दिल जीत रहा है. वहीं इस किरदार की कास्टिंग को लेकर विवाद भी होने लगा है. असल में Hyun-ju का किरदार 39 साल के कोरियन एक्टर Park Sung-hoon ने निभाया है, जो पुरुष हैं. ‘स्क्विड गेम 2’ से पहले वो कई पॉपुलर कोरियन शोज में नजर आ चुके हैं जैसे- ‘Gonjiam: Haunted Asylum’, ‘My Only One’, ‘Memorials’. इसके साथ ही उन्होंने नेटफ्लिक्स के कोरियन ड्रामा ‘The Glory’ और ‘Queen of Tears’ में भी काम किया है. पिछले कुछ समय में नेगेटिव किरदारों में नजर आने वाले Sung-hoon को ‘स्क्विड गेम 2’ में एक स्वीट और प्यारा किरदार निभाते देखना भी फैन्स को सरप्राइज कर रहा है. मगर इसके साथ ही बहुत सारे दर्शकों को शो से ये शिकायत होने लगी है कि ट्रांसजेंडर किरदार के लिए पुरुष एक्टर को क्यों कास्ट किया गया, ट्रांसजेंडर एक्टर को क्यों नहीं?

स्क्विड गेम्स

क्या बोले शो के क्रिएटर
शो के क्रिएटर Hwang Dong-hyuk ने डिसाइडर के साथ इंटरव्यू में बताया है कि उन्होंने कहानी में ट्रांसजेंडर किरदार इसलिए रखा क्योंकि इसके जरिए वो इंडस्ट्री में ट्रांसजेंडर्स का रिप्रेजेंटेशन दिखाना चाहते थे, जिसकी कोरियन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में बहुत कमी रही है. Dong-hyuk ने कहा कि वो ‘स्क्विड गेम’ की कहानी में उन लोगों को गेम का हिस्सा बनते दिखाना चाहते हैं जो समाज के पिछड़े तबके से हों. ‘इस मैसेज के लिए सीजन 1 का रिप्रेजेंटेटिव किरदार अली था, जो कोरिया में काम करने वाला एक विदेशी था. ये कोरिया के सबसे पिछड़े तबकों में से एक है. 

इसी तरह आज के कोरियन समाज में, जेंडर माइनॉरिटी वो ग्रुप है जिसे समाज स्वीकार नहीं करता. इसलिए मैंने Hyun-ju के किरदार को पुरुष से स्त्री बनने वाली ट्रांसजेंडर महिला के रूप में क्रिएट किया’ Dong-hyuk ने बताया. लेकिन एक मेल एक्टर को ट्रांसजेंडर रोल में कास्ट करने का फैसला बहुत लोगों को पसंद नहीं आया और कई लोगों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये कैसा रिप्रेजेंटेशन है? हालांकि, Dong-hyuk ने बताया कि साउथ कोरिया में ट्रांसजेंडर किरदार पर्दे पर लाना एक बड़ा चैलेन्ज है जिसका एहसास उन्हें Hyun-ju किरदार की कास्टिंग में हुआ. 

Dong-hyuk ने अपने शो में ट्रांसजेंडर किरदार की कास्टिंग को लेकर हो रही कंट्रोवर्सी पर जवाब भी दिया. उन्होंने बताया कि शो में Hyun-ju का रोल करने के लिए उन्हें कोई कोरियन ट्रांसजेंडर एक्ट्रेस खोजने में बहुत मुश्किल हुई.

दुनिया की हर सभ्यता में है ट्रांसजेंडर्स की मौजूदगी

किरदारों की कास्टिंग और ट्रांसजेंडर को रिप्रजेंट करने में भले ही शो के निर्माताओं को मु्श्किल हुई, लेकिन दुनिया भर की हर सभ्यता और इसके इतिहास में ट्रांसजेंडर को खुले तौर पर रिप्रजेंट किया गया है. यह न सिर्फ इतिहास का हिस्सा रहे हैं, बल्कि मिथकों की कथाओं को भी आगे बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध हुए हैं. भारतीय मिथकों की बात करें तो यहां मोहिनी, शिखंडी, वृहन्नला, इला जैसे कई पौराणिक किरदार रहे हैं जो कि ट्रांसजेंडर रहे हैं. इसके अलावा रोमन और ग्रीक माइथालॉजी में भी ट्रांसजेंडर किरदारों का जिक्र हुआ है. 

भारतीय पौराणिक मिथक और ट्रांसजेंडर, यानी लैंगिक विविधता की गौरवमयी परंपरा
भारतीय पौराणिक कथाएं कितनी समृद्ध हैं और यह कितनी विविधता से भरी हुई हैं, इसका पता इसके किरदारों की डिटेलिंग से चलता है. ये किरदार न केवल मानवता के मूलभूत गुणों को उजागर करते हैं बल्कि समाज में हर व्यक्ति की भूमिका और महत्व को भी रेखांकित करते हैं. इनमें ट्रांसजेंडर या किन्नर समुदाय का उल्लेख बार-बार आता है, जो यह दिखाता है कि भारतीय संस्कृति में लैंगिक विविधता को प्राचीन काल से ही सम्मान मिला है और इन्हें एक तरह से सामाजिक मान्यता भी प्राप्त है. इन कथाओं में ट्रांसजेंडर समुदाय को न केवल समाज का हिस्सा माना गया, बल्कि उन्हें अद्वितीय शक्तियों और विशेषताओं से भी जोड़ा गया.

अर्धनारीश्वर- वह स्वरूप जिसमें शिव और पार्वती दोनों एक साथ शामिल हैं

भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप पुरुष और स्त्री ऊर्जा का योग है. इस रूप में शिव और पार्वती एक ही शरीर में आधे-आधे प्रकट होते हैं. यह रूप दिखाता है कि पुरुष और स्त्री न केवल एक-दूसरे के पूरक हैं, बल्कि दोनों की समान रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका है. यह विचारधारा आज के समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है, जहां लैंगिक समावेशिता की जरूरत है.

मोहिनी रूप: आकर्षण और शक्ति का संगम
जब अर्धनारीश्वर की कथा से आगे बढ़ते हैं तो भगवान विष्णु के एक प्रसिद्ध अवतार मोहिनी का जिक्र प्रमुखता से होता है. भगवान विष्णु का मोहिनी रूप लैंगिक बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण है. समुद्र मंथन के दौरान अमृत की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और देवताओं को अमृत पिलाया. यह कहानी दर्शाती है कि स्त्री और पुरुष के गुणों का संगम असाधारण परिणाम ला सकता है. मोहिनी का रूप यह भी दर्शाता है कि समाज में सौंदर्य, आकर्षण और चतुराई को समान रूप से सम्मान मिलना चाहिए.

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जब एक राजा एल बन गया इला
लिंग परिवर्तन की एक कथा का जिक्र विष्णु पुराण और भागवत पुराण में भी मिलता है. पौराणिक संदर्भों में क्षत्रिय परंपरा में दो वंश सबसे प्रमुख रहे हैं. एक सूर्य देव का सूर्य वंश
और दूसरा चंद्रवंश. सूर्यवंश में इक्ष्वाकु, सगर, रघु, दशरथ और खुद श्रीराम जन्मे थे. वहीं, चंद्रवंश में पुरुरवा, आयु, ययाति, शांतनु और भीष्म जैसे प्रतापी राजा हुए हैं. खुद श्रीकृष्ण का यदुवंश भी चंद्रवंश की ही एक शाखा से निकला है. 

चंद्रवंश की शुरुआत कैसे हुई, यह कथा बहुत रोचक है. एक बार देवी पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने बहुत ही सुंदर और रमणीक काम्यक वन की रचना की. यह वन मायावी था और पार्वती के कहने पर शिव ने इसे बेहद गुप्त रखा था. पार्वती ने इसे एक श्राप से भी बांध रखा था. अगर कोई भी इस वन में उनकी इच्छा के विरुद्ध प्रवेश करेगा तो वह स्त्री हो जाएगा. 

एक बार वैवस्वत मनु का पुत्र एल, किसी शत्रु राजा का पीछा करते हुए नगर से दूर वन में निकल आया. वह शत्रु राजा तो नहीं मिला, लेकिन उसे खोजता हुआ एल गलती से शिव-पार्वती के मायावी काम्यक वन में प्रवेश कर गया. वन में प्रवेश करते ही वह पार्वती के श्राप से शापित हो गया और स्त्री बन गया. अपना ये रूप देखकर उसे बहुत दुख भी हुआ और आश्चर्य भी. उसने बार-बार देवी पार्वती से माफी मांगी कि वह गलती से इस वन में प्रवेश कर गया था, लेकिन अब वह श्रापित हो चुका था इसलिए इसे बदला नहीं जा सकता था, लेकिन इसकी अवधि कम की जा सकती थी. देवी पार्वती ने उसके स्त्री बने रहने की अवधि सिर्फ दो वर्ष कर दी. 

इस दौरान एल का नाम इला हो गया और चंद्रमा के पुत्र बुध से उसका विवाह हुआ. इला और बुध के पुत्र का नाम पुरुरवा हुआ, जिसने चंद्रवंश की स्थापना की. पुरुरुवा एक पराक्रमी राजा के तौर पर पौराणिक इतिहास में पहचाना जाता है.

महाभारत में शिखंडी, महज किन्नर ही नहीं योद्धा भी
महाभारत के प्रमुख पात्र शिखंडी का जन्म एक स्त्री के रूप में हुआ था, लेकिन उन्होंने पुरुष की भूमिका निभाई. शिखंडी को भीष्म पितामह के वध में निर्णायक भूमिका निभाने वाला माना जाता है. हुआ यूं शिखंडी पूर्व जन्म में काशीराज की बड़ी पुत्री अंबा थी. भीष्म ने काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण कर लिया था और उन्हें हस्तिनापुर ले आए थे. इनमें से अंबिका और अंबालिका ने तो विचित्रवीर्य के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया था, लेकिन अंबा शाल्व के राजकुमार से प्रेम करती थी. जब उसने इस बारे में भीष्म को बताया तो उन्होंने सम्मान सहित अंबा को शाल्व के राजकुमार के पास भेज दिया. लेकिन शाल्व कुमार ने इसे अपना अपमान समझा और अंबा से विवाह करने से मना कर दिया. 

अंबा ने अपने इस अपमान की वजह भीष्म को माना और शपथ ली कि भले ही जन्म पर जन्म क्यों न लेने पड़ जाएं, लेकिन वह भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी. इस तरह अंबा ने आत्मदाह कर लिया. उसने अगले जन्म में पांचाल के राजा द्रुपद के घर जन्म लिया और वह किन्नर थी. हालांकि किन्नर होने के बावजूद शिखंडी महायोद्धा था. महाभारत में उसे हर जगह राजकुमार शिखंडी ही कहकर संबोधित किया गया है. 

शिखंडी

युद्ध के दौरान जब पितामह भीष्म ये बताते हैं कि मैं स्त्रियों पर शस्त्र नहीं उठाता हूं तब 10वें दिन के युद्ध में कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने शिखंडी को अपने रथ पर चढ़ा लिया. जब पितामह भीष्म ने अर्जुन के रथ पर शिखंडी को चढ़े देखा तो अपने तीरों की दिशा बदल दी, लेकिन अर्जुन ने इसी दौरान शिखंडी की ओट लेकर उन पर बाणों की वर्षा कर दी. 

अब सवाल उठता है कि शिखंडी को ही रथ पर क्यों चढ़ाया गया, कोई भी स्त्री जा सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं था. उस वक्त युद्ध का नियम था कि कोई भी स्त्री युद्ध भूमि में प्रवेश नहीं करेगी. इसीलिए द्रौपदी चाहकर भी अर्जुन के साथ उसके रथ पर नहीं जा सकी थी. योद्धा होने के बावजूद, पितामह शिखंडी का सच जानते थे और वह यह भी जानते थे कि यह पूर्व जन्म की अंबा ही उनसे अपना बदला लेने आई है, इसलिए उन्होंने उसे स्त्री ही माना और उस ओर तीर नहीं चलाए थे. ऐसा न होता तो इच्छा मृत्यु का वरदान पाए पितामह को युद्ध में हराया ही नहीं जा सकता था. 

यह कथा यह बताती है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी समाज में महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

भगवान राम का किन्नर समुदाय को आशीर्वाद
रामायण की एक कथा के अनुसार, जब भगवान राम वनवास के लिए जा रहे थे, तब उन्होंने अपने पीछे आने वाले पुरुषों और स्त्रियों को वापस लौट जाने को कहा. लेकिन किन्नर वहीं खड़े रहे. उनका मानना था कि श्रीराम ने तो सिर्फ स्त्री-पुरुषों से लौट जाने के लिए कहा, लेकिन वे न तो स्त्री हैं और न ही पुरुष. उनकी इस निष्ठा और समर्पण को देखकर भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे समाज में विशेष स्थान और सम्मान पाएंगे. अगर वे किसी को आशीर्वाद दे देंगे तो वह अकाट्य होगा. 

अर्जुन का बृहन्नला रूप: कला और ज्ञान का प्रतीक
महाभारत के अज्ञातवास काल में अर्जुन खुद बृहन्नला बने थे और एक किन्नर बनकर राजा विराट के नगर में छिपकर रह रहे थे. इस दौरान उन्होंने राजकुमारी उत्तरा और अन्य महिलाओं को नृत्य और संगीत सिखाया. अर्जुन चाहते तो कोई अन्य रूप और या तरीका भी छिपने के लिए अपना सकते थे, लेकिन एक योद्धा द्वारा स्त्री रूप धरना और बृहन्नला बन जाना, समाज के लिए इतना बड़ा संदेश था कि कोई भी चाहे वह स्त्री हो या पुरुष या दोनों ही न हो, लेकिन उसका महत्व समाज में कम नहीं है. अर्जुन ने वृहन्नला बनकर ही विराट युद्ध भी जीता था.  

इन कथाओं में ट्रांसजेंडर समुदाय को केवल वर्णित नहीं किया गया है, बल्कि उन्हें विशेष मान्यता और सम्मान भी दिया गया है. यह भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है कि लैंगिक विविधता कोई आधुनिक अवधारणा नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है.

अब अगर ग्रीक और रोमन मिथकों की ओर चलें तो यहां भी ट्रांसजेंडर विषय बहुत ही रोचक और अद्भुत तरीकों से सामने आया है. इन मिथकों में विभिन्न पात्र और कहानियां शामिल हैं, जो लिंग परिवर्तन, लिंग fluidity और ट्रांसजेंडर अनुभव को प्राचीन नजरिए से सामने रखती हैं. 

हर्माफ्रोडाइटस (Hermaphroditus)
हर्माफ्रोडाइटस, ग्रीक मिथकों में एक ऐसा पात्र है जिसके पास स्त्री और पुरुष दोनों लिंगों वाले लक्षण हैं. वह हेर्मीस (देवताओं के दूत) और एफ़्रोडाइट (सौंदर्य और प्रेम की देवी) का पुत्र था. उसकी कहानी में सल्मासिस नाम की एक जलपरी भी शामिल है, जिसने देवताओं से उसे पाने की प्रार्थना की. उसकी प्रार्थना को देवताओं ने स्वीकार किया, और दोनों का शरीर एक हो गया, जिससे हर्माफ्रोडाइटस द्विलिंगी हो गए.

टिरेसियस (Tiresias)
टिरेसियस एक प्रसिद्ध भविष्यवक्ता था, जिसने अपने जीवन में पुरुष और महिला दोनों के रूप में जीवन जिया. एक दिन, जब उसने दो सांपों को यौन क्रिया करते हुए देखा, तो उसने उन पर छड़ी पटकी, जिससे वे महिला में बदल गए. सात वर्षों तक महिला रहने के बाद, उसने एक दिन फिर से यही घटनाक्रम देखा और वापस पुरुष बन गया. 

कैनेथ/कैनीस (Caeneus)
कैनीस नाम की इस दिव्य महिला को समुद्र के देवता पोसाइडन ने महान उद्देश्य के लिए पुरुष बनने का वरदान दिया. पुरुष बनने के बाद, उसने अपना नाम कैनेथ रखा और एक महान योद्धा बना. यह कहानी ग्रीक मिथकों में लिंग परिवर्तन और सामाजिक पहचान की बड़ी कथा है. 

ग्रीक मिथक

इफिस (Iphis)
इफिस का जन्म एक लड़की के रूप में हुआ था, लेकिन उनके पिता ने केवल पुत्र की इच्छा की थी. उनकी मां ने उनकी पहचान छिपाकर उन्हें लड़के के रूप में पाला. जब इफिस की शादी एक महिला से तय हुई, तो देवी आइसिस ने उन्हें पुरुष में बदल दिया, ताकि विवाह संभव हो सके. यह कहानी प्रेम, लिंग और पहचान के बारे में गहरे सवाल उठाती है.

अट्टिस (Attis)
अट्टिस की कहानी रोमन मिथकों से जुड़ी है. वह देवी सिबेले का पुजारी और भक्त था. एक घटना के दौरान उसना अपना लिंग त्याग दिया और खुद को ट्रांसजेंडर बना लिया. 

कोरियन मिथकों में ट्रांसजेंडर
कोरियन मिथकों में एक शिन देवता है जो लिंग की सीमाओं से परे हैं. यह पुरुष या महिला किसी भी रूप में माना जा सकता है. हालांकि यह स्पष्ट रूप से ट्रांसजेंडर या लैंगिक विशेषताओं की विचारधारा को सामने नहीं लाता है. इसी तरह, कोरियाई लोककथाओं में जांगजावोक और जांगसुंग जैसे पवित्र प्रतीक भी हैं, जो समुदाय की रक्षा करने वाले देवता माने जाते हैं. ये दोनों भी समान रूप से पुरुष और महिला दोनों ऊर्जा का संतुलन बनाए रखते हैं, लेकिन इनमें यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों में से पुरुष कौन है और स्त्री कौन. कोरियाई लोककथाओं में कुछ कहानियां हैं जिनमें पात्र जादुई रूप से अपना लिंग बदल लेते हैं. हालांकि यह महज कहानियां भर हैं, इनका कोई इतिहास परिवर्तनीय उदाहरण नहीं मिलता है.
 



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