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देवताओं का स्नान, तिल का दान और एक दिन का उपवास… महाकुंभ में क्या है माघ पूर्णिमा का महत्व – magh purnima story sangam ganga snan prayagraj history and puja vidhi mantra in hindi


माघ मास की पूर्णिमा, सनातन परंपरा में वह दिन है, जिसे बेहद विशेष माना गया है. पद्म पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में जो महत्व पूरे माघ महीने का बताया गया है, उसके अकेले का महत्व माघ मास की पूर्णिमा का है. माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की ही तरह माघ मास की पूर्णिमा का चंद्रमा भी अमृत वर्षा करता है और इस दौरान वह नदी, सरोवर आदि के जल को अमृत तुल्य कर देता है. इसलिए इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु नदी तट पर स्नान करने जुटते हैं. कुंभ आयोजन के दौरान इसीलिए माघ पूर्णिमा का महत्व और बढ़ जाता है.

हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष का 15वीं तिथि ही माघ पूर्णिमा कहलाती है. इस दिन का धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से खास महत्व है और भारत के अलग-अलग हिस्सों में इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. लोग घरों में भी कथा-हवन-पूजन का आयोजन करते हैं और अगर व्यवस्था हो सकती है तो गंगा तट पर कथा-पूजन का अलग ही महत्व है. खासकर, प्रयागराज के संगम में इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है. माघ पूर्णिमा का संबंध पवित्र स्नान, व्रत, दान और आध्यात्मिक उन्नति से जोड़ा जाता है. 

मोक्षदायिनी है पूर्णिमा तिथि
सनातन में पूर्णिमा तिथि को वैसे भी मोक्षदायिनी तिथि माना जाता है और माघ मास की पूर्णिमा होने के कारण यह दिन और शुभ हो जाता है. माघ मास का महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि इस वक्त प्रकृति में बदलाव का समय होता है और वह खुद को भी शुद्ध कर रही होती है. इस दौरान नदियां भी अपने आप को शुद्ध कर लेती हैं और इस दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करना इसी नजरिए से शुभ माना जाता है. ऐसा विश्वास है कि इस दिन किया गया स्नान और दान अक्षय पुण्य प्रदान करता है और पापों से मुक्ति दिलाता है.

महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का महत्व
माघ मास के दौरान हर साल प्रयागराज में विशेष माघ मेला आयोजित होता है, जिसका समापन आज के अंतिम स्नान से ही होता है. करोड़ों श्रद्धालु संगम व गंगा स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन देवता भी गंगा में स्नान करने आते हैं. महाकुंभ के दौरान माघ पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व होता है. अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, घी, कंबल और अन्य आवश्यक वस्तुएं दान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है. खासकर, जरूरतमंदों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है. इसलिए महाकुंभ में जगह-जगह भंडारों के आयोजन की भी तैयारी है.

क्या है पौराणिक कथा?
इस दिन उपवास रखने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है. भगवान विष्णु और शिव की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. तुलसी की पूजा करना और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है. माघ पूर्णिमा से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में राजा दिलीप ने अपने राज्य में माघ मास के दौरान स्नान, व्रत और दान की परंपरा शुरू की थी. उन्होंने यह संकल्प लिया कि जब तक उनके राज्य में सभी लोग पुण्य कार्य नहीं करेंगे, वे स्वयं भोजन नहीं करेंगे. उनकी इस भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके राज्य में सुख-समृद्धि का वास हुआ.

एक कथा ऐसी भी है कि स्वर्ग में देवताओं से कुछ गलती हो गई थी. देवराज इंद्र को एक तपस्या के वक्त ऋषि त्रिशिरा की हत्या किए जाने का पाप लगा था और अन्य देवताओं पर अहंकार के कारण अपने कर्तव्य से विमुख होने का पाप था. ऐसे में पाप से मुक्त होने के लिए सभी को देवगुरु बृहस्पति ने विशेष तिथि और नक्षत्र में संगम स्नान का उपाय बताया. इसके बाद ही वह दोबारा स्वर्ग जाने के अधिकारी हो सके थे. वह तिथि माघ पूर्णिमा की थी तब से इस दिन संगम स्नान और कम से कम गंगा स्नान की परंपरा चल पड़ी.  

तिल के दान की परंपरा
इस दिन स्नान के बाद तिल के दान की भी विशेष परंपरा और महत्व है. तिल के दान से कुंडली में शनि ग्रह को दोषों का प्रभाव कम होता है. मान्यताएं ऐसी भी हैं कि इस दिन विशेष योग और नक्षत्र में तीर्थों में अमृत गिरा था, इसलिए, इस दिन के स्नान को अमृत स्नान पर्व भी कहा जाता है. पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद इस दिन गंगा आरती का विशेष आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों दीप प्रवाहित किए जाते हैं. इसके साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करने और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है.

क्या है विज्ञान?
विज्ञान के अनुसार, माघ मास में पृथ्वी और चंद्रमा के बीच विशेष ऊर्जा संतुलन होता है, जिससे समुद्री ज्वार-भाटा अधिक प्रभावी होते हैं. इस दौरान किए गए स्नान और उपवास शरीर को शुद्ध करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं. साथ ही, इस मौसम में नदी और अन्य जल स्रोतों में स्नान करना स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है.

क्यों है खिचड़ी खाने का महत्व?
महाकवि घाघ ने माघ का महत्व बताते हुए इसे कायाकल्प का महीना कहा है और इस दौरान खिचड़ी खाने का विशेष फल बताया है. खिचड़ी सबसे सात्विक खाद्य पदार्थ है और सुपाच्य है. वह कहते हैं कि माघ मास में जब सूर्य अनुकूल होता है, तब गंगा स्नान करके रेती में ध्यान करना चाहिए, दिन भर का उपवास रखना चाहिए और सिर्फ एक समय ही भोजन करना चाहिए. वह कहते हैं ‘माघ महीना खिच्चड़ खाय’

ऐसा कहने के पीछे तर्क ये है कि इस महीने में सूर्य की किरणें बहुत प्रभावित नहीं करती हैं, वह ऊष्मा देती हैं, और इसका सेवन करना चाहिए. इसे विटामिन डी का अच्छा सोर्स कहा जाता है. दूसरी बात यह है कि सर्दी का मौसम बीत रहे होने और नया मौसम आने के बीच का समय माघ होता है जो ऋतु क्रांति कहलाता है. इस दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है इसलिए शरीर को आंतरिक शोधन के लिए छोड़ देना चाहिए और सिर्फ एक समय खिचड़ी का भोजन करना चाहिए. कोशिश करनी चाहिए कि पूरे महीने इस नियम का पालन हो और कई लोग इस आधार पर कल्पवास करते भी हैं, लेकिन अगर पूरे माघ माह के दौरान ऐसा मौका न मिल पाया हो तो माघ की पूर्णिमा का दिन भी इसके लिए खास होता है.
 
ऋग्वेद में वर्णन है कि,
“चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्योजायतः,
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत.”

ऋग्वेद के पुरुष सूक्त (ऋग्वेद 10.90.13) में दर्ज है कि , चंद्रमा मन से उत्पन्न हुआ, सूर्य ने नेत्रों से जन्म लिया, इंद्र और अग्नि मुख से प्रकट हुए, तथा प्राण (श्वास) से वायु उत्पन्न हुई. यह श्लोक सृष्टि की उत्पत्ति और विभिन्न प्राकृतिक तत्वों के संबंध को दर्शाता है, जो वैदिक ज्ञान और दर्शन का महत्वपूर्ण हिस्सा है. पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्र दोनों ही अपनी संपूर्ण कलाओं के साथ मौजूद होते हैं, इसलिए माघ मास की पूर्णिमा का महत्व सांस्कृतिक, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक तीनों ही नजरिए से किसी और दिन से कहीं अधिक है. 



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