वक्फ एक्ट पर अब कानूनी लड़ाई का दौर, सुप्रीम कोर्ट में 73 याचिकाएं, समर्थन में 7 राज्यों की अर्जियां, आज 10 पिटीशन पर सुनवाई – Now hase of legal battle on Wakf Act 73 petitions in Supreme Court 7 states in support hearing to be held today ntc
सुप्रीम कोर्ट आज बुधवार को नए वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा. कोर्ट में 73 याचिकाएं दायर हैं, जिनमें कहा जा रहा कि आज दस याचिकाएं सुनवाई के लिए लिस्ट की गई हैं. कोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती दी गई है. याचिकाओं में दावा किया गया है कि संशोधित कानून के तहत वक्फ की संपत्तियों का प्रबंधन असामान्य ढंग से किया जाएगा, और ये कि कानून मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई आज दोपहर 2 बजे के लिए शेड्यूल है, जहां याचिकाओं पर जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन के रूप में तीन जजों की बेंच सुनवाई करेगी.
हाल ही में केंद्र सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन किया था, जिसे लागू किया जा चुका है. इसे लेकर कुछ जगहों पर विरोध-प्रदर्शन भी हुए हैं, और कई स्थानों पर हिंसक घटनाएं भी सामने आई हैं. ये कानून राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद 5 अप्रैल को संसद में बहस के दौरान पारित हुआ था.
पहले लोकसभा में 288 वोटों के समर्थन में और 232 विरोधी वोटों के साथ यह बिल पारित हो गया था. इसके बाद राजसभा में 128 सदस्यों ने इस अधिनियम के पक्ष में वोट किए, जबकि 95 सदस्यों ने इसका विरोध किया था. कानून पर बिल के रूप में बहस के दौरान संसद में विपक्ष द्वारा भारी विरोध भी देखा गया. इस दौरान कई लोगों ने सरकार पर आरोप लगाए कि यह कानून संपत्ति जब्त करने की एक कोशिश है.
वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं में कई बुनियादी मुद्दों को उठाया गया है. खासतौर से याचिकाओं में इन कुछ पॉइंट्स पर जोर दिया गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संशोधन के तहत वक्फ बोर्डों के चुनावी ढांचे को खत्म कर दिया गया है.
नए संशोधन के तहत अब गैर-मुस्लिम को वक्फ बोर्डों में नियुक्त किया जा सकेगा, जिससे दावा है कि मुस्लिम समुदाय के आत्म-शासन और उनके धार्मिक संपत्तियों का प्रबंधन प्रभावित हो सकता है.
अधिनियम के तहत कार्यकारी अधिकारियों को वक्फ संपत्तियों पर ज्यादा नियंत्रण मिल जाएगा, जिससे यह आशंका जताई जा रही है कि भविष्य में सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों पर मनमाने आदेश दे सकती हैं और उन्हें अपने हाथ में ले सकती हैं.
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अधिनियम में अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को वक्फ बनाने से रोक दिया गया है, जिससे उनके मौलिक अधिकार प्रभावित होंगे.
अधिनियम में वक्फ की परिभाषा में बदलाव किया गया है, जिससे ‘वक्फ बाई यूजर्स’ की न्यायिक परंपरा को हटा दिया गया है. इससे वक्फ के संरक्षण के लिए बनाए गए नियम कमजोर हो सकते हैं.
याचिकाओं में दावा है कि कई मामलों में यह डर है कि नए नियमों के चलते सदियों पुरानी वक्फ संपत्तियां जो मौखिक या अनौपचारिक तरीके से स्थापित की गई हैं, वे वैधता खो सकती हैं. याचिकाकर्ताओं ने यह आरोप लगाया है कि यह अधिनियम मुस्लिम समुदाय के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश है.
किसके द्वारा चुनौती दी जा रही है?
वक्फ कानून में किए गए संशोधन के खिलाफ देशभर से कई राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. मुख्य याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई, यांत्रिक (YSRCP) सहित कई दल शामिल हैं. साथ ही इसमें एक्टर विजय के टीवीके, आरजेडी, जेडीयू, AIMIM और AAP जैसे दलों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं.
इनके अलावा, दो हिंदू पक्षों द्वारा भी याचिकाएं दायर की गई हैं. वकील हरि शंकर जैन ने एक याचिका दर्ज कराई है जिसमें दावा किया गया है कि अधिनियम की कुछ धाराओं से गैरकानूनी ढंग से सरकारी संपत्तियों और हिंदू धार्मिक स्थलों पर कब्जा किया जा सकता है. नोएडा की रहने वाली पारुल खेरा ने भी एक याचिका दायर की है, और उन्होंने भी इसी तरह के तर्क दिए हैं.
धर्मिक संगठनों में सामस्थ केरला जमीयथुल उलमा, अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने भी कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं. जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदानी का भी इस मामले में अहम योगदान है.
याचिकाकर्ता बनाम केंद्र सरकार
जहां याचिकाकर्ता इस अधिनियम के खिलाफ हैं, तो वहीं केंद्र सरकार ने इसे पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी बताया है. सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार और भ्रष्टाचार की संभावना को कम करने के लिए यह संशोधन अहम हैं. इससे प्रशासन में सुधार आएगा और वक्फ परिसंपत्तियों का उचित प्रबंधन सुनिश्चित होगा.
इनके अलावा, सात राज्यों ने भी सुप्रीम कोर्ट में इस अधिनियम के पक्ष में हस्तक्षेप करने की अपील है. इन राज्यों का तर्क है कि यह अधिनियम संविधान के अनुरूप है, यह भेदभावपूर्ण नहीं है और बेहतर प्रशासनिक प्रबंधन के लिए जरूरी है.
केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक केविएट भी दाखिल किया है. केविएट एक तरह का कानूनी नोटिस होता है जिसे दाखिल करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि अगरप कोई आदेश पारित किया जाता है तो इस पक्ष को सुना जाए. मसलन, इससे यह साफ है कि केंद्र सरकार कानून में किए गए संशोधन को लेकर मजबूती से खड़ी है. अब देखने वाली बात होगी कि आज सुप्रीम कोर्ट इन मामलों पर क्या रुख अपनाता है.