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क्‍या महाराष्ट्र में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने के आसार हैं? फायदे में तो दोनों रहेंगे | Opinion – speculation of uddhav thackeray raj thackeray joining hands analysis on bmc election opnm1


राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की राजनीति में थोड़ा सा ही फासला बचा है. राज ठाकरे के मुकाबले उद्धव ठाकरे थोड़े बेहतर स्थिति में हैं. और ये चीज विधायकों के नंबर की वजह से मानी जा सकती है. 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना लोकसभा जैसा प्रदर्शन तो नहीं कर सकी, लेकिन महाविकास आघाड़ी में सबसे ज्यादा सीटें जीतने में सफल जरूर रही – सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा उद्धव ठाकरे को.

राज ठाकरे के लिए इससे भी बुरी बात क्या होगी कि वो अपने बेटे अमित ठाकरे की भी हार नहीं टाल पाये, और उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की आदित्य ठाकरे की जीत में भी अहम भूमिका रही. 

लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में अब एक ऐसी चर्चा चल रही है, जिसमें राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने की बातें हो रही हैं – और वो भी बीएमसी चुनावों के ठीक पहले. यहां तक कहा जाने लगा है कि दोनो मिलकर भी बीएमसी चुनाव लड़ सकते हैं.  

ये चर्चा शुरू हुई है राज ठाकरे के एक शादी समारोह में शामिल होने के बाद. शादी में उद्धव ठाकरे भी शामिल हुए थे – और उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे ने राज ठाकरे का वेलकम भी किया. 

एक छोटी सी मुलाकात और रश्मि ठाकरे से बात के मायने

उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे के भतीजे शौनक पाटनकर की शादी का रिसेप्शन बांद्रा पश्चिम के ताज लैंड्स एंड में रखा गया था. रिसेप्शन में कई बड़ी हस्तियां पहुंची थीं, लेकिन चर्चा में दो ही नाम सबसे ऊपर हैं. एक राज ठाकरे, और दूसरे उद्धव ठाकरे. 

राज ठाकरे जब रिसेप्शन में पहुंचे तो रश्मि ठाकरे ने उनका स्वागत किया. राज ठाकरे उस दौरान रश्मि ठाकरे और उनकी मां से बात करते देखे गये. ये भी बताते हैं कि आदित्य ठाकरे भी वहां थे लेकिन कुछ ही देर पहले लंच के लिए चले गये थे, इस कारण राज ठाकरे से उनकी भेंट नहीं हो सकी.

हालांकि, हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में शौनक के पिता श्रीधर पाटनकर का कहना था, ‘राज साहेब के आने की बात पर अटकलें लगाने की जरूरत नहीं है… वो परिवारिक संबंधों के चलते पहुंचे थे.’ श्रीधर पाटनकर के मुताबिक, अलग-अलग समय पर आने के चलते राज और उद्धव ठाकरे की मुलाकात नहीं हुई थी. बोले, ‘हमारे कुछ रिश्तेदार उन दोनों से मिले थे.’

बेशक राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के मिलने की बात और होती, लेकिन रश्मि ठाकरे और राज ठाकरे की मुलाकात भी कम महत्वपूर्ण नहीं कही जा सकती. उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने से पहले और गठबंधन सरकार के दौरान रश्मि ठाकरे की सक्रिय भूमिका महसूस की गई थी.  

राज ठाकरे को लेकर अगर चर्चाएं बेबुनियाद नहीं हैं, तो जो हुआ है वो आगे की राजनीति के लिए काफी है. मुलाकातें ऐसे ही होती हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में तो ऐसी मुलाकातें होती ही रहती हैं. शरद पवार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल आते हैं, और बहुत सारी बातें हो जाती हैं जिनके बारे में बाद में मालूम होता है. संजय राउत और देवेंद्र फडणवीस की एक होटल में चुपके चुपके हुई मुलाकात की भी काफी चर्चा हुई थी, जिसके बारे में बताया गया था कि इंटरव्यू के लिए टाइम लेने को लेकर दोनो मिले थे. 

अगर रश्मि ठाकरे और राज ठाकरे में हाल चाल से कुछ आगे की बात हुई है, तो राजनीतिक समीकरण सामने आने में ज्यादा देर भी नहीं लगने वाली है. 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनो परिवार आमने सामने एक दूसरे के विरोध में खड़े थे. यहां तक की माहिम से राज ठाकरे के बेटे अमित के खिलाफ उद्धव ठाकरे ने अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था, जिसे लेकर राज ठाकरे और उनके कार्यकर्ता नाराज भी थे. 2019 के चुनाव में जब आदित्य ठाकरे पहली बार चुनाव लड़ रहे थे तो राज ठाकरे ने एमएनएस का उम्मीदवार नहीं खड़ा किया. 

ठाकरे परिवार का साथ आना जरूरी भी, मजबूरी भी

विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हालत ये हो गई है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को मिले राजनीतिक दल का दर्जा भी खतरे में पड़ गया है. और, पार्टी के चुनाव निशान रेल इंजन पर भी संकट खड़ा हो गया है.

लेकिन, ये भी देखा गया है कि राज ठाकरे के उम्मीदवारों के कारण शिवसेना को कम से कम 10 सीटें गवांनी पड़ी है, जिसमें वर्ली से मिलिंद देवड़ा और दिंडोशी से संजय निरुपम की हार भी शामिल है. साफ है कि मराठी वोटों के बंटने से ऐसा हो रहा है. फिर तो राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के हाथ मिला लेने पर एक दूसरे के वोट ट्रांसफर होने की भी काफी संभावना है. 

हिंदुस्तान टाइम्स ने ही रिपोर्ट दी है कि एमएनएस और शिवसेना (यूबीटी) दोनो के अंदर ये चर्चा भी है कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपने मतभेद भुलाकर बीएमसी और निकाय चुनाव साथ लड़ सकते हैं. दोनो राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में पहले भी सुलह की बातें होती रही है.

अगर वास्तव में ये हो सका तो निश्चित तौर पर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनो फायदे में रहेंगे. नतीजे भले ही कुछ और बयां कर रहे हों, लेकिन चुनावों में उद्धव ठाकरे के खिलाफ राज ठाकरे का खड़ा होने का मतलब तो एकनाथ शिंदे के साथ होना ही था. हो सकता है, अमित ठाकरे की हार और एकनाथ शिंदे के उम्मीदवारों की शिकस्त के बाद समीकरण बदल गये हों.

उद्धव ठाकरे भले ही राज ठाकरे के मुकाबले थोड़ी बेहतर स्थिति में खड़े हों, लेकिन अस्तित्व का संकट तौ दोनो ही नेताओं के सामने खड़ा हो गया है – और महाराष्ट्र की राजनीति में बने रहने का यही उपाय है कि दोनो हाथ मिला लें. तब हो सकता है, एकनाथ शिंदे के लिए खुद को शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे का वारिस होने का दावा करना मुश्किल हो. वैसे भी एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री न बन पाना भी तो उद्धव ठाकरे के पक्ष में ही गया है.  



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