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delhi assembly election 2025 – पहाड़ी वोटर्स का इफेक्ट? करावल नगर से टिकट कटा तो मुस्तफाबाद से मोहन सिंह बिष्ट को उतारना पड़ा बीजेपी को – mohan singh bisht mustafabad delhi assembly election 2025 bjp karawal nagar pahadi voters ntcpbt


भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) साल 1998 से ही दिल्ली की सत्ता से बाहर है. करीब 27 वर्ष लंबा वनवास समाप्त करा दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने की कोशिश में जुटी बीजेपी ने 11 जनवरी को दिल्ली चुनाव के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की थी. इस लिस्ट में करावल नगर से पांच बार के विधायक मोहन सिंह बिष्ट का टिकट काट बीजेपी ने आम आदमी पार्टी से आए कपिल मिश्रा को उम्मीदवार घोषित कर दिया था.

मोहन सिंह बिष्ट ने करावल नगर से टिकट कटने के बाद बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया था. अगले ही दिन बीजेपी ने एक उम्मीदवार के नाम की तीसरी सूची जारी की. इस लिस्ट में मुस्तफाबाद सीट से उम्मीदवार के तौर पर मोहन सिंह बिष्ट का नाम था. मोहन सिंह बिष्ट का करावल नगर से टिकट कटा तो बीजेपी को उन्हें मुस्तफाबाद से क्यों उतारना पड़ा?

1- पहाड़ी वोटर्स का इफेक्ट

अनुमानों के मुताबिक दिल्ली में करीब 30 लाख पहाड़ी मतदाता हैं जिनमें उत्तराखंड से आने वालों की तादाद 20 लाख के पार बताई जाती है. 10 लाख के करीब पहाड़ी मतदाता हिमाचल प्रदेश से नाता रखते हैं. कुल मिलाकर देखें तो मतदाताओं की ये तादाद भले छोटी नजर आती हो, कई सीटों पर जीत-हार तय करने में यह वर्ग निर्णायक भूमिका निभाता है. करावल नगर की ही बात करें तो इस इलाके में करीब 22 फीसदी पहाड़ी मतदाता हैं. इतने ही पहाड़ी मतदाता मुस्तफाबाद विधानसभा क्षेत्र में भी बताए जाते हैं जहां से बीजेपी ने अब मोहन को उतारा है.

2- पहाड़ी पॉलिटिक्स का बड़ा चेहरा

मोहन सिंह बिष्ट केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की पहाड़ी पॉलिटिक्स का बड़ा चेहरा माने जाते हैं. साल 2015 के दिल्ली चुनाव को छोड़ दें तो मोहन सिंह बिष्ट 1998 से 2020 तक, पांच बार करावल नगर सीट से विधायक रहे. 2015 के चुनाव में मोहन को कपिल मिश्रा ने ही हराया था. तब कपिल आम आदमी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे थे. मोहन सिंह बिष्ट और कपिल मिश्रा न सिर्फ पुराने प्रतिद्वंद्वी हैं, एक ही पार्टी में होने के बावजूद दोनों नेताओं के मतभेद जगजाहिर रहे हैं. टिकट कटने के बाद मोहन ने इसे पार्टी की गलती करार देते हुए निर्दलीय नामांकन करने का ऐलान किया था.

3- पहाड़ी पॉलिटिक्स की पिच पर एज

पहाड़ी समाज से संबंधित संगठन कम से कम चार से पांच सीटों पर पहाड़ी कैंडिडेट उतारे जाने की मांग करते आए हैं. उत्तराखंड महापंचायत के महामंत्री मानवेंद्र देव मनराल ने खुलकर यह इच्छा जाहिर करते हुए कहा था कि कई सीटें ऐसी हैं पहाड़ी वोटर निर्णायक है. पहाड़ी समाज के लोग मोहन बिष्ट का टिकट तय मान रहे थे.

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मोहन सिंह बिष्ट ने टिकट कटने पर नाराजगी जाहिर करते हुए बगावती रुख अख्तियार कर लिया था. इससे करावल नगर के साथ ही कई सीटों पर पहाड़ी मतदाताओं की नाराजगी से बीजेपी की संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता था. ऐसे समय में, जब आम आदमी पार्टी ने पहाड़ी समाज से एक भी उम्मीदवार नहीं दिया है. बीजेपी मोहन सिंह बिष्ट जैसे कद्दावर को चुनाव मैदान से दूर रख एज नहीं गंवाना चाहती थी.

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4- इन सीटों पर निर्णायक हैं पहाड़ी वोटर

पहाड़ी वोटर बस करावल नगर या मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर ही प्रभावी नहीं हैं. ये करीब आधा दर्जन सीटों पर मजबूत दखल रखते हैं. इनमें रोहताश नगर, शाहदरा, गोकुलपुरी, बाबरपुर से लेकर पटपड़गंज जैसी सीटें हैं. पटपड़गंज सीट पर 2020 के चुनाव में बीजेपी के रवि नेगी ने तब के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जैसे हैवीवेट कैंडिडेट को कड़ी टक्कर दी और सिसोदिया तीन हजार से कुछ ही अधिक वोट से जीत सके तो इसके पीछे भी पहाड़ी वोटरों की ही मुख्य भूमिका मानी जाती है.



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