Parliament Deadlock – 5 दिन में बस 5 फीसदी काम, सबकी सियासत के मुद्दे अलग… ‘सर्वदलीय भरोसे’ के बाद शांति से चलेगी संसद? – Only five percent work in five days everyone political issues are different Will Parliament run peacefully after all party meet ntc
संसद में सप्ताह भर से चला आ रहा गतिरोध सोमवार को समाप्त हो गया जब सरकार और विपक्ष एक समझौते पर पहुंचे. इसका नतीजा दोनों सदनों में संविधान पर विशेष चर्चा के लिए तारीखों की घोषणा के साथ देखने को मिला. 25 नवंबर को शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से संसद के दोनों सदनों में कामकाज नहीं सका है. विपक्ष लोकसभा और राज्यसभा दोनों में अडानी ग्रुप पर अमेरिका में लगे आरोपों, संभल हिंसा और मणिपुर में जारी अशांति जैसे मुद्दों पर चर्चा की मांग पर अड़ा था.
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा सोमवार को बुलाई गई सभी दलों के नेताओं की बैठक में सरकार और विपक्षी दल दोनों सत्र के दौरान संविधान पर विशेष चर्चा के लिए सहमत हुए. यह विश्वास व्यक्त करते हुए कि दोनों सदन मंगलवार से सुचारू रूप से काम करेंगे, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि लोकसभा 13-14 दिसंबर को संविधान पर बहस करेगी, जबकि राज्यसभा 16-17 दिसंबर को इस पर चर्चा करेगी. बैठक में शामिल हुए रिजिजू ने संवाददाताओं से कहा कि विपक्षी दलों ने संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की थी.
पहले हफ्ते में अडानी मुद्दे पर बाधित रही संसद
इससे पहले दिन में, कई विपक्षी सांसदों ने स्पीकर ओम बिड़ला से मुलाकात की, संविधान पर चर्चा की मांग की और उनसे इसके लिए तारीख तय करने का आग्रह किया. इस बीच, विपक्षी सदस्यों ने अडानी अभियोग मामले, संभल हिंसा और अन्य मुद्दों पर दोनों सदनों में अपना विरोध जारी रखा, जिसके कारण कार्यवाही बार-बार बाधित हुई. आखिरकार लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई. अडानी विवाद पर चर्चा की कांग्रेस की जिद और इसे स्वीकार करने में सरकार की अनिच्छा के कारण सत्र का पहला सप्ताह बर्बाद हो गया.
जनता के पैसे से चलने वाली देश की संसद, शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह में पांच प्रतिशत ही चल सकी. इस दौरान लोकसभा में सिर्फ 69 मिनट कामकाज हो सका. 25 नवंबर को सत्र के शुरुआती दिन लोकसभा 6 मिनट चली. पहले दिन ही तय हो गया कि संसद के हंगामावीर जनता से मिली जिम्मेदारी कैसे निभाने वाले हैं. 27 नवंबर को लोकसभा 15 मिनट चली. अगले दिन भी यही हाल रहा. लोकसभा 29 नवंबर को 20 मिनट और 2 दिसंबर 13 मिनट चल पाई. राज्यसभा 25 नवंबर को 33 मिनट, 27 नवंबर को 14 मिनट चली. उच्च सदन 28 नवंबर को 17 मिनट चला और 29 नवंबर को 13 मिनट में स्थगित हो गया. 2 दिसंबर को 17 मिनट कार्यवाही चली.
लोकसभा 5 दिन में सिर्फ 69 मिनट मिनट चली
इस तरह लोकसभा 5 दिन में 69 मिनट और राज्यसभा 94 मिनट चली. यहां आपको बताते चलें कि संसद को चलाने में हर घंटे डेढ़ करोड़ रुपये का खर्च आता है. जिस वक्त अमेरिका जैसे देश में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ये जिम्मेदारी सौंप चुके हैं कि फिजूल खर्च नहीं होना चाहिए. तब हमारे देश की संसद में सियासतदानों ने मानों अपनी जिम्मेदारियों को राजनीति की खूंटी पर टांग दिया है और एक बार फिर संसद के कामकाज को बाधा दौड़ बना दिया है. नतीजा, लोकसभा में अबतक सिर्फ 4 फीसदी और राज्यसभा में 5 फीसदी कामकाज हुआ. क्योंकि सबकी सियासत के मुद्दे अलग-अलग हैं.
कांग्रेस चाहती है सबसे पहले अडानी पर ही चर्चा हो, जबकि टीएमसी चाहती है कि महंगाई, मणिपुर पर चर्चा हो. समाजवादी पार्टी के सांसद कहते हैं कि अडानी से बड़ा मुद्दा संभल है, इसलिए चर्चा उस पर हो. मुद्दों की इसी महाभारत में शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह में संसद ठप रही. पांच दिन में जब चार-पांच फीसदी कामकाज दोनों सदन में होता दिखा तो स्पीकर ने सर्वदलीय बैठक बुलाई. ओम बिड़ला के साथ बैठक में पक्ष और विपक्ष ने हामी भरी की मंगलवार से संसद शाति से चलेगी. सूत्रों की मानें तो सोमवार को संसद की बैठक शुरू होने से पहले सुबह की बैठक में कांग्रेस सांसदों के बीच इस बात पर एक राय थी कि इस तरह चर्चाओं और कार्यवाही को रोकने से पार्टी के हित में मदद नहीं मिल रही है.
साथी दलों के दबाव में कांग्रेस ने बदली रणनीति
इंडिया ब्लॉक नेताओं की बैठक में भी वाम दलों ने रुख अपनाया कि सदन में विरोध की विपक्ष की मौजूदा रणनीति काम नहीं कर रही है. इस बैठक में लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) राहुल गांधी भी शामिल थे. विपक्ष का एक बड़ा वर्ग कई मुद्दों को उठाने के लिए दोनों सदनों के कामकाज में भाग लेने का इच्छुक था, इसलिए कांग्रेस नेतृत्व को अपनी रणनीति बदलने और गतिरोध तोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. शाम को पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हुई कांग्रेस नेताओं की बैठक में पार्टी ने मंगलवार को सदन की बैठक शुरू होने से पहले संसद भवन के मकर द्वार पर अडानी मुद्दे पर धरना देने के लिए विपक्षी सांसदों को एकजुट करने का फैसला किया.
हालांकि, भाजपा नेताओं ने कहा कि पार्टी पहले ही संविधान पर चर्चा की मांग कर चुकी है. एक भाजपा नेता ने कहा, ‘हमने इस शीतकालीन सत्र की पहली बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक में ही यह मांग की थी. हम संविधान पर उचित चर्चा चाहते थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी इस पर बोलने की संभावना है.’ कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सरकार पर संसद चलाने में कथित तौर पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, ‘आज भी दोनों सदन स्थगित हो गए. इंडिया ब्लॉक की पार्टियों ने अडानी, मणिपुर, संभल और अजमेर पर तत्काल चर्चा के लिए नोटिस दिया था. इन (विपक्षी) दलों ने कोई आंदोलन नहीं किया. हमारी तरफ से शायद ही कोई नारेबाजी हुई. लेकिन मोदी सरकार नहीं चाहती थी कि संसद चले.’
हालांकि, इंडिया ब्लॉक की कुछ पार्टियां, विशेष रूप से टीएमसी ने अडानी विवाद को कांग्रेस के समान प्राथमिकता नहीं दी. तृणमूल की मांग बेरोजगारी, महंगाई और विपक्ष शासित राज्यों के साथ निधि आवंटन में केंद्र के कथित भेदभाव सहित कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की थी. अब तक, टीएमसी ने सत्र के लिए इंडिया गठबंधन की रणनीति तैयार करने के लिए कांग्रेस द्वारा बुलाई गई किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया है. जयराम रमेश ने अडानी मुद्दे पर विपक्षी खेमे में मतभेद की खबरों को खारिज करते हुए कहा कि अलग-अलग पार्टियों के अलग-अलग मुद्दे हैं, लेकिन वे सभी इस महत्वपूर्ण मामले पर एकजुट हैं.